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इस हफ्ते की टीआरपी रैंकिंग के हिसाब से पिछले हफ्ते की तरह ही है। रिपब्लिक भारत ने न सिर्फ हैट्रिक लगा दी है, बल्कि आजतक पर 4 अंक की बड़ी बढ़त भी हासिल कर ली है। खास बात ये है कि टॉप 4 चैनलों को छोड़कर कोई भी दहाई अंक तक नहीं पहुंच पाया है और टॉप 3 चैनलों को छोड़कर सबने इस हफ्ते अपने अंक गंवाए हैं।रिपब्लिक भारत 20.1 अंकों के साथ नंबर 1 है, आजतक 1.4 के सुधार के बावजूद 16 अंकों के साथ दूसरे नंबर पर है।इंडिया टीवी भी 0.8 की उछाल के साथ 12.8 अंक हासिल कर तीसरे नंबर पर बना हुआ है। टीवी 9 भारतवर्ष ने चौथा स्थान तो बरकरार रखा है, लेकिन जितना इंडिया टीवी ऊपर चढ़ा है, उतना ही ये नीचे आया है यानी इस हफ्ते 10.4 अंक हैं। टॉप 5 का पांचवां चैनल न्यूज़ 18 इंडिया है।

आजतक का तीन हफ्तों से रिपब्लिक भारत के हाथों मात टीवी मीडिया के लिए बेहद दिलचस्प चर्चा का विषय है। जैसा कि मैंने पहले भी अपने टीआरपी विश्लेषण में बताया था कि सुशांत सिंह राजपूत केस की कवरेज़ में चैनलों पर दर्शकों को लाने में सोशल मीडिया की भूमिका सबसे बड़ी है और आप अगर चैनल और ट्विटर दोनों पर हैं तो ये देख भी रहे होंगे। रिपब्लिक भारत न सिर्फ आजतक पर चैनल कवरेज में भारी पड़ रहा है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी ये पूरी तरह हावी है। दर्शक कंटेंट को लेकर कुछ भी कहें, प्रशंसा करें या आलोचना करें, लेकिन टीवी चैनलों के न्यूज़रूम में एक बात कॉमन है, जो सभी मीडियाकर्मी कहते और मानते हैं कि जो दिखता है वो बिकता है और रिपब्लिक का लगातार तीसरे हफ्ते नंबर 1 बनना ये दिखा रहा है कि फिलहाल सुशांत कवरेज ही बिक रहा है।

मैंने ये भी सुझाव दिया था कि रिपब्लिक की पिच पर उसे ही मात देने और उसी विषय पर पिले रहने यानी नकल करने की रणनीति कारगर नहीं होने वाली। वक्त भले ही लगे, लेकिन दूसरे चैनलों को अपने दर्शकों को बनाए रखने के लिए अपने कंटेंट प्लान, अपनी स्ट्रैटेज़ी पर ही टिके रहना चाहिए।सवाल ये है कि चैनलों के लिए तो जो स्थिति है, वो अलग बात है, जाहिर सी बात है कि टीम रिपब्लिक का हौसला बढ़ा हुआ है, सफलता से आत्मविश्वास बढ़ना चाहिए भी, लेकिन देश के लिए टीवी चैनलों की ये स्थिति किसी भी तरह से अच्छी नहीं है। आप खुद सोचकर देखिए कि जिस देश में पिछले साल यानी 2019 में 30 हजार से ज्यादा दिहाड़ी मजदूर और 10 हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं, जिसकी रिपोर्ट एनसीआरबी के आंकड़ों में सबके सामने है, उस देश के किसी भी चैनल को इससे कोई सरोकार नहीं है।

जहां 2019-20 की जीडीपी 4 के आसपास सिमट चुकी थी, जो कोरोना आपदा की पहली तिमाही में ऐतिहासिक निगेटिव आंकड़े पर जा पहुंची है, उस देश की अर्थव्यवस्था से किसी चैनल को लेना-देना नहीं है। जहां रोजाना लाखों युवा रोजगार की मांग को लेकर ट्विटर पर आवाज़ उठा रहे हैं, वहां किसी चैनल को भयावह बेरोज़गारी की स्थिति पर बहस कराने की फुर्सत नहीं है। जहां दुनिया के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री के मन की बात को लाइक से ज्यादा डिसलाइक मिलने पर डिसलाइक का ऑप्शन तक हटा दिया जाता है, वहां नाराज़गी की इस वजह को टटोलने की कोशिश किसी चैनल पर नहीं दिखती है। जहां तमाम मुश्किलात के बावजूद कोरोना काल में कृषि क्षेत्र 3.4 फीसदी विकासदर के साथ आत्मनिर्भरता की प्रेरणा बनकर उभरा है, वहां इसकी सकारात्मकता तक को दिखाने का विज़न नहीं है। देश की बुनियादी समस्याओं, मौजूदा दौर की चुनौतियों, जन सरोकार सबसे दूर होकर एक विषय पर केंद्रित अज़ीबो-गरीब किस्म की कवरेज़ दिखाते चैनल्स और उसे देखते दर्शकों की सोच है ये टीआरपी। अंत में रिपब्लिक के सभी मित्रों को बधाई।

वरिष्ठ पत्रकार परमेन्द्र मोहन जी के फेसबुक वाल से

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