रिपोर्टर : कब आए आप कुंभ में ?
IIT BABA : मैं 10 तारीख को 10 तारीख से चार दिन हो गए
रिपोर्टर : क्या नाम आपका और कब ये संत बाना आपने ग्रहण किया?
IIT BABA : ये थोड़ा कंट्रोवर्शियल है, न मैं वैसे अपने आप को न संत मानता हूं, न साधु मानता हूं. वैसे आप उसको वैरागी बोल सकते हो. लेकिन ये बोलने से लोग पूछते कि तुमने दीक्षा ली है कि नहीं, सन्यास लिया है या नहीं. तुम अकेले ही ज्ञान की खोज में निकल जाओ. क्या बस मुझे तो समझना है. जहां से भी समझने को मिलेगा वही गुरु है दुकान वाले ने कुछ समझाया वो गुरु बन गया चाय गुरु. दूसरे वाले ने समझाया कि कैसे बिजनेस होगा वो बिजनेस गुरु.
सब ऐसे है ना कोई ना कोई चीज सिखाएगा. अभी एक मैं किसी की किताब पढ़ रहा था उसने गांव का एग्जांपल दिया ऐसे कि गांव में जो काम करने वाली थी उससे क्या सीखा. मैंने जो धोबी था उससे क्या सीखा. तो सीखने को तो किसी से भी सीख सकते हो तुम वो तुम्हारे अंदर होना चाहिए. तो मेरा तो वैसा ही है कि हां बस ज्ञान के ऊपर जा जा के और यह पूरा क्रम जो है उसको समझ के और अपना जो सिलेबस पूरा करके अपना मुक्ति या मोक्ष बोलते. मुक्ति और मोक्ष वही एग्जाम है फाइनल. आपका आध्यात्मिकता का असली टेस्ट तो वही है. वही है बस आपका पुनर्जन्म ना हो. आपकी इच्छा बची होगी तो फिर से पुनर्जन्म होगा
रिपोर्टर : रहने वाले कहां के हैं ?
IIT BABA : जन्मस्थान हरियाणा में झज्जर जिला गांव का नाम सासरोली
रिपोर्टर : कहां तक एजुकेशन आपने की ?
IIT BABA : मैंने तो बीटेक किया है एरो स्पेस इंजीनियरिंग में IIT Bombay से उसके बाद IIT से विजुअल कम्युनिकेशन में डिजाइन फोटोग्राफी.
रिपोर्टर : बीटेक करके आदमी सोचता है फिर सीधे फोटोग्राफी ?
बीटेक के टाइम पर भी फिलॉसफी कोर्सेस लेता था What is Life ये सारे कौन-कौन से क्या क्या बता के गए समझने की कोशिश करते तुम उसको. तुमको नहीं समझ में आता जैसे वहां पर ऐसा हुआ ये पैसे वैसे कमा कर कोई फायदा नहीं है, ज्यादा खुशी नहीं मिलेगी, क्योंकि तुमने देखा ये बिजनेस वालो के पास बहुत पैसा है लेकिन खुश तो नहीं है. ये उस टाइम पर बहुत क्रेज था ना ऐसे की पैशन फॉलो करो तुम वो चीज जिस चीज को करना तुमको को पसंद है तो तुम खुश ज्यादा रह पाओगे तो फिर मैं ऐसे ट्रेवल फोटोग्राफी फिल्म मेकिंग डिजाइन मार्केटिंग इस सब में उसम पढ़ाई की उसमें काम किया बहुत और उससे भी मन भर गया
जैसे आपको भी समझ में आता होगा कि शुरू शुरू में ऐसे लगता है कि हां कितना मजा आएगा यहां जाएंगे वहां जाएंगे रिपोर्टिंग करेंगे थोड़ी टाइम के बाद ऐसे बोरियत सी हो जाती है. यार वही चीज तो कर रहे बारबार तो फिर वो हो गई तो फिर तुमको लगा कि यार ये तो जवाब नहीं है. तो ऐसे तुम जवाब ढूंढते जाओगे ढूंढते जाओगे एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव तो आखिर जाके तुम यहीं पर आ जाओगे.
रिपोर्टर : आपका नाम क्या है
IIT BABA : अभय सिंह
रिपोर्टर : हर कोई तो अभय सिंह नहीं है जो तलाश करता करता अपने बदलते जाए स्टेप बाय स्टेप हर कोई
IIT BABA : सब कर ही रहे हैं लेकिन वो एक जन्म में नहीं कर रहे व थोड़ा थोड़ा करते हैं. एक एक जन्म में
रिपोर्टर : जब आपने आईआईटी किया, घर वालों की उम्मीद होती है कि अब बेटे ने यह कर लिया अब नौकरी लगेगी बड़ा पैकेज होगा. घर कुछ मदद होगी तो फिर घर वाले नाराज तो हुए होंगे जब आपने फिर ये छोड़ के सब ये धारण कर लिया.
IIT BABA : मैंने कुछ धारण नहीं किया, मैंने उनको समझाया, भारत की सबसे बड़ी प्रॉब्लम यही है, घर में बैठ के बेसिकली वो सदगुरु का क्रिया है मैं वो करता था. ध्यान में बैठ के ओम ओम तुम कर रहे हो क्रिया कर रहे हो. अब उनको लगा भाई ये तो गया, ये लड़का तो हाथ से निकल गया, ये तो बाबा बन जाएगा, किसी गुफा में बैठा होगा, मैंने बोला कि भाई मैं इस चीज को समझने की कोशिश कर रहा हूं, ये है क्या तुम करके नहीं देखोगे तो समझोगे कैसे उस चीज को मतलब, ये इसमें वो बनने या ना बनने में क्या है वो चीज को समझोगे ना आप अब आप भी करके देख सकते हो, आप करके देखने से क्या ध्यान करने से बाबा बन जाओगे, ऐसे थोड़ी होता है, तो वेशभूषा वो तो ठीक है तुम संसार में रह के भी बिना संसार के रह सकते हो मतलब और वही सबसे बड़ी परीक्षा है. लेकिन लोगों के दिमाग में ऐसा है कि, हां तुमने ऐसे कपड़े पहन लिए ये सब, मैं तो कुछ भी पहन लेता हूं ये तो ज्यादा कंफर्टेबल है इसलिए, जो मिला वही पहन लो ना उसमें क्या है.
Ayush Kumar Jaiswal,
Founder & Editor
brings over a decade of expertise in ethics to mediajob.in. With a passion for integrity and a commitment to fostering ethical practices, Ayush shapes discourse and thought in the media industry.