जिसने मंडुआडीह स्टेशन का नाम ‘बनारस’ करा दिया, जानिए

Spread the love

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी को एक नया तोहफा मिला है. मंडुआडीह स्टेशन का नाम बदलकर ‘बनारस’ करने के लिए गृह मंत्रालय की तरफ से मंज़ूरी मिल गई है. पीटीआई यानी प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया की तरफ से इस खबर को ट्वीट कर इसकी पुष्टि की गयी है तो बनारस के लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी क्यूंकि बनारस को पहचान जो मिल गई. इस पहचान को दिलाने में कोई और नहीं बल्कि खाटी अंदाज वाले बनारसी बाबू और वरिष्ठ पत्रकार असद कमाल लारी उर्फ़ एके लारी ने करीब पांच वर्षो की कड़ी मेहनत का फल है जो अब मीठा हो गया है.
देखिये क्या कुछ अपनी फेसबुक पर लिखते है ऐके लारी.

मित्रों
कल देर रात जब केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने मंडुआडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर ‘बनारस’ करने का फैसला सुनाया तो अचानक कम बजने वाले मेरे टेलीफोन की घंटियां लगातार बजनी शुरू हुई. कुछ देर लगा कारण समझने में,फिर बधाई का दौर शुरू हुआ। बहुत सारे मीडिया के साथी तमाम सवाल पूछने लगे.
पहला: मुहिम कब और क्यों शुरू किया?
जवाब: मुहिम 2015 में शुरू हुई। वजह थी बहुत से यात्री वहां आकर भी ट्रेन से नहीं उतर रहे थे. उन्हें लगता था अभी’बनारस’ नहीं आया. एक ट्रेन में सफर के दौरान ऐसा देखा और महसूस किया कि बनारस नाम कितना मशहूर है. फिर अपने मित्र गोपाल जी राय जो दिल्ली में सरकारी सेवा में है. एक दिन मुलाकात पर चर्चा किया. तय हुआ सोशल मीडिया पर मुहिम चले। फेसबुक पर राय जानने के लिए एक पोस्ट लिखा तो समर्थन गजब का दिखा. करीब 90 फीसदी लोग साथ दिखे. कुछ लोग इससे असहमत थे।उनका कहना था कि ये मांडवी ऋषि के नाम पर बना है मांग गलत है. मेरा मत था इलाके के नाम को जस का तस रखना चाहिए सिर्फ स्टेशन का नाम बदले,खैर लम्बा विमर्श चला।कुछ सहमत को कुछ असहमत थे। फिर कुछ की राय थी इसका नाम कबीर धाम हो तो कुछ महामना मालवीय का नाम चाहते थे. विमर्श चलता था।अभियान को साथ मिलता गया समर्थकों का दायरा बढ़ता गया। उधर मनोज सिन्हा रेल राज्य मंत्री बन चुके थे।उनका भी मंडुआडीह स्टेशन को विश्वस्तरीय बनाने का सपना मूर्त रूप लेने लगा था.
एक दिन अचानक मैसेंजर पर उनका संदेश आया। लिखा-आपकी मांग उचित और विचार योग्य है. यह संदेश मुहिम से जुड़े साथियों को और बल दे गया. मुहिम को धार मिलने लगी.
इसबीच मैंने पीएमओ, पीएम संसदीय आफिस सीएम और डीएम को इस सुझाव के बाबत मेल करना शुरू किया. बताया कि देश दुनिया में मशहूर इस नाम का कोई माइलस्टोन नहीं है।
फिर तत्कालीन मेयर राम गोपाल मोहले से मिला. उन्हें पूरी बात बताया।उन्हें लगा मांग सही है उन्होंने अपने स्तर से इस मांग को उठाने का भरोसा दिया. फिर ऐसा ही किया।ऐसा ही सुझाव उत्तरी के विधायक आज मंत्री मेरे साथी रविन्द्र जायसवाल को दिया।उन्हें भी बात समझ में आयी और उन्होंने भी अपने स्तर पर मुहिम शुरू की। लेकिन सीएम योगी आदित्यनाथ से मिलकर पहली बार मांग कि राजस्थान के तब और अभी भी मंत्री भाई गजेंद्र सिंह शेखावत ने। मेरे मित्र शरद सिंह के साथ। शरद बनारसी है, वह भी मुहिम का हिस्सा थे. उनके साथ हुई मुलाकात में योगी जी ने शेखावत जी भरोसा दिया था कि प्रस्ताव अच्छा है। फिर मोहले से लेकर रविन्द्र जायसवाल और अन्य साथी मुख्यमंत्री से लगायत दूसरे केन्द्रीय नेताओं से मिलते रहे।मांग उठाते रहें.
लेकिन इस मुहिम को तब और बल मिला जब 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने गाजीपुर में मंडुआडीह का नाम बदलकर बनारस करने का ऐलान किया. फिर विधानसभा चुनाव के दौरान मोदी जी और योगी जी की मौजूदगी में बनारस की चुनावी सभा में भी उन्होंने ये मुद्दा उठाया.
इधर जिलाधिकारी युगेश्वर राम मिश्र को हमने इस बाबत फिर मेल किया। मेल कहां तक बढ़ा जानकारी नहीं। पर मुहिम जारी रही। फिर एकदम डीएम सुरेंद्र सिंह का अखबारों में बयान पढ़ा कि शासन ने इस बाबत प्रस्ताव मांगा है तो उनसे मिला।उन्होंने बताया प्रस्ताव भेज दिया गया है बदलाव की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी.
फिर कल रात गृह मंत्रालय की मुहर। साथियों में खुशी की लहर। एक दूसरे को बधाई और मेरे सिर सेहरा बांधने का प्रयास। तो मेरा बस इतना कहना है कि सामूहिकता में बल होता है। मैंने सिर्फ़ विचार रखा। ऊपर जिन नामों का जिक्र किया उन्होंने और फिर ‘बनारस’ नाम से लगाव रखने वाले हजारों साथियों ने इस मुहिम को कारगर बनाया। बधाई के पात्र वह सभी साथी है जिन्होंने अपने-अपने स्तर पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मुहिम चलाई, लोगों को जोड़ा.
बस यही छोटी सी कथा है साथियों। उम्मीद करना चाहिए कि बहुत जल्द स्टेशन का नाम बदल जाएगा। मैं उन साथियों खासकर महंत विवेक दास और अन्य से माफी चाहता हूं। महंत जी कबीर धाम नाम का प्रस्ताव रख चुके थे।कुछ साथी महामना के नाम पर करने का अभियान चला रखे थे तो कुछ नाम नहीं बदलना चाहिए इसके पक्ष में थे। ऐसे साथियों से माफी। लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने और कहने का अधिकार है।तय करना सत्ता और शासन का काम है। हम क्या और आप क्या? बदलाव तो जगत का नियम है। इस निराश न हो. बधाई उन साथियों को पुनः जिनके बूते मुहिम यहां तक पहुंची.

Leave a Comment