JFK’s Forgotten Crisis Book में ऐसे क्या जिसका जिक्र पीएम मोदी ने संसद में किया

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए JFK’s Forgotten Crisis Book का जिक्र किया.

आइए जानते हैं JFK’s Forgotten Crisis Book में ऐसा क्या है ?

JFK’S FORGOTTEN CRISIS Reviews & Ratings : Bruce Riedel द्वारा लिखी गई एक किताब है, जो 1962-1963 में भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी (JFK) की भूमिका और रणनीति पर केंद्रित है। यह किताब उस समय के जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य, खासकर भारत-चीन युद्ध (1962) और उसके बाद की घटनाओं, को समझाती है। JFK ने शीत युद्ध के दौरान दक्षिण एशिया में अमेरिका की नीतियों को संतुलित करने की कोशिश की थी।

पुस्तक की प्रमुख बातें:

  1. भारत-चीन युद्ध (1962)
    इस पुस्तक में बताया गया है कि कैसे 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी से सैन्य सहायता मांगी थी। नेहरू ने अमेरिका से वायु सेना की मदद की अपील की थी, क्योंकि चीन के हमले के सामने भारतीय सेना कमजोर पड़ रही थी।
  2. तिब्बत संकट और सीआईए की भूमिका
    कैनेडी प्रशासन ने तिब्बत में चीन के खिलाफ चल रहे गुरिल्ला युद्ध में गुप्त रूप से CIA (Central Intelligence Agency) की मदद से तिब्बती विद्रोहियों को समर्थन दिया था। यह चीन-अमेरिका संबंधों में एक संवेदनशील मुद्दा था।
  3. कैरेबियन संकट (Cuban Missile Crisis)
    अक्टूबर 1962 में जब भारत-चीन युद्ध हो रहा था, उसी समय अमेरिका और सोवियत संघ के बीच कैरेबियन मिसाइल संकट भी चरम पर था। इस संकट में सोवियत संघ ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी थीं, जिससे अमेरिका और सोवियत संघ के बीच परमाणु युद्ध का खतरा पैदा हो गया था। इस कारण कैनेडी को एक साथ दो बड़े अंतरराष्ट्रीय संकटों से निपटना पड़ा।
  4. अमेरिका-भारत रिश्ते पर प्रभाव
    इस पुस्तक में बताया गया है कि 1962 के युद्ध के बाद कैनेडी प्रशासन भारत के करीब आ गया था। अमेरिका ने भारत को सैन्य सहायता देने का मन बना लिया था, लेकिन 1963 में कैनेडी की हत्या के बाद यह नीति कमजोर पड़ गई।

पुस्तक का निष्कर्ष

“JFK’s Forgotten Crisis” यह दिखाती है कि 1962 में दुनिया में कई महत्वपूर्ण घटनाएं एक साथ घट रही थीं। इस दौरान भारत और अमेरिका के संबंध मजबूत हो सकते थे, लेकिन बाद में यह मौका हाथ से निकल गया। यह पुस्तक इतिहास के एक ऐसे पहलू को उजागर करती है, जिस पर बहुत कम चर्चा होती है।

अगर आप भारत-चीन युद्ध, अमेरिका की रणनीति और शीत युद्ध (Cold War) के दौर की राजनीति को समझना चाहते हैं, तो यह किताब काफी उपयोगी साबित हो सकती है।

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