ऑनिंद्यो चक्रवर्ती ने न्यूज़लौंड्री के लिए सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी CMIE के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसके अनुसार पांच साल पहले सितंबर 2016 तक भारतीय मीडिया और प्रकाशन उद्योग में दस लाख से अधिक लोग काम कर रहे थे। अगस्त 2021 में इनकी संख्या घट कर 2 लाख 30 हज़ार रह गई है। इस सेक्टर से 78 प्रतिशत नौकरियां चली गई हैं। पांच में से चार मीडिया कर्मियों की नौकरी समाप्त हो चुकी है। कोविड के कारण नहीं बल्कि कोविड से बहुत पहले ही यह हो चुका है। जनवरी से दिसंबर 2018 के बीच भारी संख्या में मीडिया कर्मियों की नौकरियां गई हैं। इस एक साल के भीतर मीडिया और प्रकाशन में काम करने वाले 56 प्रतिशत लोगों ने या तो काम छोड़ दिया या उनकी नौकरी चली गई।
मीडिया के छात्रों के लिए यह अच्छी ख़बर नहीं है। यह सच्चाई सब जानते भी हैं। जिस वक्त हम लोग नौकरी में आए थे तब बहुत तेज़ी से सबको नौकरी मिल रही थी। नौकरी भी मिलती थी, सैलरी भी मिलती थी। आज जो काम कर रहे हैं, उनकी सैलरी की क्या हालत है, मुझे ठीक ठीक पता नहीं क्योंकि इस पेशे के लोगों से मेरा अब वैसा संपर्क नहीं रहा। नए लोग एक दूसरे को अपना बायोडेटा ही भेजते रहते हैं लेकिन किसी को नौकरी मिली है, इसकी सूचना नहीं आती है। यह अच्छा तो नहीं है। आस-पास लोगों को काम मिलता रहता है तो अच्छा ही लगता है। ख़ुद में भी भरोसा रहता है कि काम है। जब किसी के लिए काम नहीं होगा तो किसी को भी यह भरोसा नहीं रहेगा कि वह वांछित है।
2014 के बाद से पत्रकारों ने बहुत मेहनत की, यह साबित करने में कि पत्रकारिता के लिए पत्रकार होने की कोई ज़रूरत नहीं है। भांड तो कोई हो सकता है लेकिन चूँकि वे पहले से पत्रकार हैं और उस जगह पर हैं तो भांड का काम करने लगे। मुझे नहीं लगता कि नंबर एक दो तीन के चैनलों में भी नौकरियाँ हैं और वहाँ अच्छी सैलरी मिल रही है। ये मेरा अनुमान ही हो सकता है, बाक़ी वहाँ की हालत वहीं के लोग बताएँगे।गोदी मीडिया ने जिस पत्रकारिता को मज़बूत किया है, उसका खंभा आसानी से नहीं उखड़ने वाला है। यह दौर अभी कई दशक तक रहेगा। अभी जो नौकरियां हैं, उसमें भी कमी आने वाली है।
एक रास्ता बचता है यू ट्यूब। इसके बारे में भी बहुत सारे मिथक बना दिए गए हैं। मैं बहुत जानकार नहीं हूं लेकिन मानने को तैयार नहीं हूँ कि हर पत्रकार के लिए यू ट्यूब में अवसर है। पत्रकारिता आप एक संस्थान के भीतर ही करते हैं। तरह-तरह के पत्रकारों से टकराते हैं, उनके संबंध बनते हैं, उनसे स्पर्धा होती है और काफी कुछ सीखते हैं। एक तरह का संरक्षण मिलता है। निजी तौर पर यू टयूब चल सकता है लेकिन आप खुद के भरोसे हैं। ख़ास इस सरकार की मेहरबानी से इतना तो हो ही गया है कि बात बात में पत्रकार जेल में डाल दिया जाता है और मुकदमा हो जाता है। इतना जोखिम उठाना आसान नहीं होगा।
यू ट्यूब चैनल चलाने वाले पत्रकारों की एक सीमा है। उनके पास सूचनाएं नहीं हैं। केवल विश्लेषण हैं। आम जनता से किए गए सवालों के जवाब के पैकेज हैं। जिसमें कोई भी कहीं से कुछ भी बोल रहा है। गुस्से में बोलता है या अफसोस में बोलता है। लेकिन किसी योजना की मैदान में जाकर पड़ताल करना, डेस्क से उसकी तैयारी करना और फिर पेश करने जैसे काम समाप्त हो चुके हैं। पत्रकारिता का सांस्थानिक और सामाजिक ढांचा ध्वस्त हो गया है।
अपने बारे में भी और नए पत्रकारों के बारे में भी सोच कर मन दुखी हो जाता है। इसलिए इस पेशे की पढ़ाई के लिए ज़्यादा पैसा बिल्कुल ख़र्च न करें। आपके प्रिय नेता ने रोज़गार के हर अवसर को बर्बाद कर दिया है। आप उनके गुणगान में लगे रहिए, कम से कम किसी के लिए गाने की ख़ुशी तो मिलेगी। और अब चैनलों को कम पत्रकार और बिना पत्रकार के चैनल चलाने की आदत लग चुकी है। वे आपके कौशल के लिए वेतन क्यों देंगे।
बिना पत्रकारों के मीडिया संस्थान कम लागत में चल रहे हैं। जब पत्रकार ही नहीं होंगे तो मुद्दों को कवर कौन करेगा। एक पत्रकार चाहे जितना ही अच्छा क्यों न हो, वह सारे मुद्दों को कवर नहीं कर सकता है। यह संकट आपके रहते आया। आपकी मदद से आया है। मैंने कई बार समय रहते आगाह किया। मुझे ख़ुशी है कि मैं फेल कर गया। आपको लगा कि चिन्ता की कोई बात नहीं है। कम से कम प्रिय नेता तो चमक रहे हैं न। मेरी राय में आप अब इसी राय पर टिके रहिए। प्रेस नहीं रहा। अब कुछ हो तो घर में रहिए। प्रेस प्रेस करना बंद कर दीजिए। आपने जो बोया है, उसका फल खाने का टाइम आ गया है। मौज कीजिए। सूचनाविहीन लोकतंत्र मुबारक हो।
Ayush Kumar Jaiswal,
Founder & Editor
brings over a decade of expertise in ethics to mediajob.in. With a passion for integrity and a commitment to fostering ethical practices, Ayush shapes discourse and thought in the media industry.